यूनेस्को की मान्यता से वैश्विक हुआ दीपावली उत्सव, उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नई गाथा

Report By : कर्मक्षेत्र टीवी डेस्क टीम

मेरे सम्मानित प्रदेशवासियों, दुनिया के सबसे दिव्य एवं अलौकिक उत्सव दीपावली (Diwali) को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) की सूची में सम्मिलित किया जाना भारत की सनातन संस्कृति (Sanatan Sanskriti) के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। यह मान्यता केवल एक पर्व को नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक चेतना को वैश्विक मंच प्रदान करती है, जो सदियों से भारतीय समाज की आत्मा में रची-बसी रही है। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की धरती, जहां से इस परंपरा की ज्योति विश्वभर में फैली, आज स्वयं को गौरव के शिखर पर अनुभव कर रही है। यह क्षण अखिल विश्व के सनातन अनुयायियों के सम्मान का प्रतीक है और प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाला मील का पत्थर माना जा रहा है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्रीराम (Lord Ram), माता सीता (Mata Sita) और श्री लक्ष्मण (Lakshman) के अयोध्या (Ayodhya) आगमन पर जिस प्रकार पूरी नगरी को दीपों से आलोकित कर उनका स्वागत किया गया था, वही परंपरा कालांतर में दीपावली के रूप में स्थापित हुई। यह पर्व केवल प्रकाश का उत्सव नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा, सत्य और न्याय की विजय का प्रतीक रहा है। आज जब इसी दीपावली को वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा मिला है, तो यह संदेश स्पष्ट है कि भारतीय परंपराएं केवल अतीत की स्मृतियां नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य को दिशा देने वाली जीवन शैली हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) ने वर्ष 2017 से श्री अयोध्या धाम (Shri Ayodhya Dham) में भव्य, दिव्य और अलौकिक दीपोत्सव (Deepotsav) के आयोजन की परंपरा को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया। प्रारंभ में यह आयोजन राज्य स्तर पर सांस्कृतिक पुनर्स्मरण का प्रयास था, लेकिन आज यह विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजनों में गिना जाने लगा है। लाखों दीपों से सजी सरयू (Saryu) की आरती, भव्य झांकियां और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश को वैश्विक सांस्कृतिक पर्यटन (Cultural Tourism) के मानचित्र पर एक विशिष्ट स्थान भी दिलाती हैं।

पिछले वर्षों में सांस्कृतिक पुनर्जागरण (Cultural Renaissance) की यह श्रृंखला केवल दीपोत्सव तक सीमित नहीं रही। लगभग 500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर (Ram Mandir) का निर्माण भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण अध्यायों में शामिल हो गया है। यह निर्माण केवल एक धार्मिक संरचना का सृजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता, ऐतिहासिक न्याय और राष्ट्रीय चेतना के पुनर्स्थापन का प्रतीक है। राम मंदिर ने अयोध्या को वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र (Global Spiritual Hub) के रूप में स्थापित किया है।

इसी क्रम में मोक्षदायिनी काशी (Kashi) से लेकर लीलाधर श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा (Mathura) तक, आस्था और विकास का संतुलित संगम देखने को मिला है। काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Dham) कॉरिडोर ने जहां श्रद्धालुओं को आधुनिक सुविधाओं के साथ आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया है, वहीं मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में तीर्थ विकास (Pilgrimage Development) ने स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक पर्यटन को नई गति दी है। यह विकास मॉडल यह दर्शाता है कि परंपरा और आधुनिकता एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं।

कलियुग से मुक्त मानी जाने वाली भूमि नैमिषारण्य (Naimisharanya) से लेकर कल्कि धाम सम्भल (Kalki Dham Sambhal) तक, विश्वास (Faith), विकास (Development) और धरोहर (Heritage) की त्रिवेणी निरंतर प्रवाहित हो रही है। महायोगी गोरखनाथ (Mahyogi Gorakhnath) की भूमि गोरखपुर (Gorakhpur) में धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थानों का विकास, वाल्मीकि आश्रम लालापुर (Valmiki Ashram Lalapur) का संरक्षण, निषादराज की पवित्र भूमि श्रृंगवेरपुर धाम (Shringverpur Dham) का विकास और बौद्ध तीर्थ कुशीनगर (Kushinagar) का अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त करना, इस बात का प्रमाण है कि जब शासन की दृष्टि सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ी हो, तो समग्र विकास संभव है।

उत्तर प्रदेश में आयोजित महाकुंभ (Mahakumbh) का भव्य स्वरूप और कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का सुगम एवं सुरक्षित संचालन प्रशासनिक संकल्प से सिद्धि की यात्राओं के उदाहरण हैं। करोड़ों श्रद्धालुओं की सहभागिता, बेहतर यातायात व्यवस्था, स्वच्छता अभियान और तकनीकी नवाचारों ने यह सिद्ध किया है कि बड़े धार्मिक आयोजनों को आधुनिक प्रबंधन (Modern Management) के साथ सफलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है। इससे न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिला है, बल्कि प्रदेश की प्रशासनिक क्षमता पर भी वैश्विक स्तर पर विश्वास मजबूत हुआ है।

अब प्रयागराज (Prayagraj) में माघ मेला (Magh Mela) का पावन अवसर आ रहा है, जहां आस्था, समता और लोक संस्कृति (Folk Culture) का संगम श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए तैयार है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर आयोजित यह मेला भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का जीवंत उदाहरण है, जहां साधु-संतों की परंपरा, लोक कलाओं की प्रस्तुति और सामाजिक समरसता एक साथ देखने को मिलती है। माघ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मूल्यों का उत्सव भी है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की जनता से आह्वान किया है कि वे इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण की श्रृंखला में सहभागी बनें। यह सहभागिता केवल दर्शक के रूप में नहीं, बल्कि अपनी विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए सक्रिय भूमिका निभाने के रूप में होनी चाहिए। सरकार का प्रयास है कि उत्तर प्रदेश को ‘उत्सव प्रदेश’ (Festival State) के रूप में स्थापित किया जाए, जहां हर नागरिक अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व महसूस करे और विश्व के सामने उसे आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत करे।

आज उत्तर प्रदेश विकास और विरासत (Development & Heritage) के संतुलन का मॉडल बनकर उभर रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर, निवेश और औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण यह संदेश देता है कि आर्थिक समृद्धि और आध्यात्मिक चेतना साथ-साथ आगे बढ़ सकती हैं। यूनेस्को द्वारा दीपावली को मिली मान्यता इसी दिशा में एक और सशक्त प्रमाण है कि भारत की परंपराएं वैश्विक मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

यह केवल आरंभ है। आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश अपनी सांस्कृतिक धरोहर, धार्मिक पर्यटन और सामाजिक समरसता के माध्यम से विश्व को यह दिखाने के लिए तैयार है कि सनातन परंपरा (Sanatan Tradition) केवल अतीत की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की राह भी है। ‘उत्सव प्रदेश’ में सभी का स्वागत है, जहां आस्था, संस्कृति और विकास एक साथ नई गाथा लिख रहे हैं।

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