महर्षि दयानंद ने लुप्त हो रही भारतीय संस्कृति को बचाया।-आचार्य सोमदेव
कानपुर। आर्य समाज, स्त्री आर्य समाज एवं आर्य कन्या इंटर कॉलेज गोबिन्द नगर के संयुक्त तत्वाधान में आर्य समाज मंदिर गोविंद नगर में महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती एवं बोधिसत्व (26) फरवरी के उपलक्ष्य मे चल रहे अथर्ववेद पारायण यज्ञ के पांचवे दिन की प्रातः कालीन सभा का आरंभ वैदिक यज्ञ से हुआ। आचार्य सोमदेव जी ने अथर्ववेद के मंत्रों का स्वरो सहित पाठ किया। यज्ञ शाला में उपस्थित सैकड़ों नर नारियों ने पवित्र स्वाहा की ध्वनि से प्रज्वलित अग्नि में आहुतिया अर्पित की। राजस्थान से पधारे उपदेशक आचार्य सोमदेव जी ने आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती के जन्म दिवस पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि महर्षि दयानंद का प्रादुर्भाव ऐसे समय हुआ जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। इसाई मिशनरी तेजी से भारतीय समाज में धर्मांतरण का कुचक्र रच रही थी ।हमारे समाज में अंधविश्वास ,पाखंड, गुरुडमवाद,बाल विवाह, सती प्रथा जैसी भयंकर कुप्रथाएं फैली थी ।वैदिक संस्कृति लुप्त हो रही थी ।ऐसी विषम परिस्थितियों में महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना करके लुप्त हो रही वेदों की संस्कृति को बचाने का कार्य किया। तथा जनमानस में वेदों की ओर लौटो का नारा देकर भारतीयों के धर्मांतरित होने से रोका। महर्षि दयानंद सरस्वती को विधर्मियों के द्वारा प्रलोभन ,भय और अपमान के द्वारा वैदिक संस्कृति के प्रचार करने से विचलित करने का कुत्सित प्रयास किया गया ।किंतु वह निर्भीक, ईश्वर भक्त और वेदोद्वारक,सन्यासी संसार के विषय भोगों से नहीं हिला अपितु सारे संसार को हिला कर रख दिया ।अमृतसर से पधारे संगीताचार्य प. दिनेश पथिक ने महर्षि दयानंद की महिमा का बखान भजनों के माध्यम से किया। उनके द्वारा प्रस्तुत भजन “हंसते -हंसते कौम का हर गम उठाया आपने ” तथा “ऋषि की कहानी सितारों से पूछो ” को लोगों ने खूब सराहा तथा भावविभोर होकर खूब तालियां बजाई ।
कार्यक्रम में प्रमुख रुप से शुभकुमार वोहरा, वीरेंद्र मल्होत्रा, प्रकाश वीर आर्य, वीरा चोपड़ा, त्रिलोकी नाथ रावल ,सुरेंद्र गेरा, चंद्रकांता गेरा एवं संतोष अरोड़ा आदि उपस्थित थे।